अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को मिली नई दिशा, अब ऐसे बचेंगे लाखों के खर्च
- LU के indo-brazilian e-symposium में हुआ नए विचारों का संचार
- सस्ती और गुड़वत्तापरक दवा जनता को उपलब्ध करने पर हुई चर्चा
- ब्रिटेन, हंगरी, चेक गणराज्य, पुर्तगाल, चीन, उरूग्वे, अर्जेंटीना जैसे 10 देशों के शोधकर्ताओं ने लिया हिस्सा
1 May 2020, Friday
(लखनऊ/VMN) जहां एक ओर कोरोना महामारी से पूरा विश्व तमाम तरह की अनिश्चितकालीन गंभीर समस्याओं से जूझने के लिए मजबूर है और पूरे विश्व में लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है जिससे न केवल आर्थिक बल्कि शिक्षा जगत, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक गतिविधियां, व्यापार आदि सभी कार्य क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं तो वहीं दूसरी ओर आयोजित हो रहे online कार्यक्रमों ने शिक्षा जगत से लेकर तमाम क्षेत्रों के लिए एक नई राह खोल दी है। खासतौर से विश्वविद्यालय स्तर पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों को एक ऐसा मार्ग मिल गया है जहां कुछ भी खर्च न कर विश्व के कई देश एक मंच पर आकर अपने विचारों, संस्कृति, शिक्षा आदि का आदान-प्रदान बड़ी ही आसानी से कर सकते हैं।
इन कार्यक्रमों में होने वाले लाखों रुपए के खर्च से भी बचा जा सकेगा। यह बात लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय और फ़ेडरल यूनिवर्सिटी स्यारा, ब्राज़ील के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इंडो-ब्राजीलियन ऑनलाइन संगोष्ठी (indo-brazilian e-symposium) में उठी जिसका विषय सॉलिड स्टेट प्रॉपर्टीज ऑफ़ फार्मास्युटिकल्स ( on solid state properties of pharmaceuticals) रहा। इस मौके पर न केवल कोरोना महामारी बल्कि तमाम गंभीर बीमारीयों की वैक्सीन व ड्रग पर चर्चा की गई।
इस कार्यक्रम में ब्रिटेन, हंगरी, चेक गणराज्य, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, उरुग्वे, नेपाल, चीन, ब्राजील और भारत के विभिन्न हिस्सों सहित दस देशों के 150 से अधिक शोधकर्ताओं ने हिस्सा लिया और दवा के विकास के बारे में अपने विचार रखे जो वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार और समाज की समृद्धि को आगे बढ़ाने में मदद कर सके। लखनऊ विश्वविद्यालय की भौतिक विभाग की अध्यक्ष प्रो.पूनम टंडन और ब्राजील के समन्वयक प्रो. अलेहांद्रो पेड्रो अयाला द्वारा आयोजित online संगोष्ठी में दोनों विश्वविद्यालयों ने इस क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग साझा किया है। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि औषध विज्ञान महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक हैं। हम सभी इसके विशेष रूप से वाणिज्यिक, व्यावसायिक और रणनीतिक पहलुओं के बारे में चिंतित हैं कि जनसाधारण के लिए दवाओं को कैसे सस्ता बनाया जा सकता है। उन्होंने दोनों देशों के बीच शोध में घनिष्ठ संबंध के बारे में भी बात की। भारत और ब्राजील के कई शोधकर्ताओं ने ई-संगोष्ठी में भाग लिया है।
हेड, इंटरनेशनल डिवीजन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, प्रो संजीव कुमार वार्ष्णेय ने सत्र का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि अनुसंधान आधारित दवा निगमों का प्राथमिक कार्य मरीजों की भलाई को बेहतर बनाने वाली प्रभावी दवाओं, टीकों और सेवाओं की खोज और उत्पादन है। भारत और ब्राज़ील दोनों ही उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं जिन्हें न केवल लागत में कटौती करने के लिए बल्कि समय बचाने के लिए नए फार्मास्यूटिकल अणुओं के सह-विकास पर भी काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दवाइयों के ठोस राज्य गुणों का दवाओं और दवा उत्पादों की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने IBSA और ब्रिक्स जैसे विभिन्न बहुपक्षीय प्लेटफार्मों के बारे में बात की, जो एक साथ काम करने के अवसर प्रदान करते हैं। ई-संगोष्ठी का पहला दिन ब्राजील के समन्वयक और उनके रिसर्च टीम के छह व्याख्यानों के साथ समाप्त हुआ। प्रो आलेहांद्रो पेद्रो आयला ने अपने व्याख्यान में बताया कि कैसे क्रिस्टल इंजीनियरिंग के माध्यम से दवा के ठोस रूपों में कोफ़ॉर्मर को जोड़ने से दवा के भौतिक-रासायनिक गुणों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। प्रोफ़ेसर अयाला के ब्राज़ीलियाई शोधकर्ताओं द्वारा फार्मास्युटिकल को-क्रिस्टल्स के महत्व और उनके बहुरूपों को उजागर किया गया। साओ पाउलो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हाविएर एलेना ने कुछ एंटी-कैंसर दवाओं पर चर्चा की। संगोष्ठी का दूसरा दिन कई नए व्याख्यान के साथ जारी रहा। भौतिकी विभाग की अध्यक्षा प्रो पूनम टंडन ने “क्रिस्टल इंजीनियरिंग-नए ठोस रूपों के डिजाइन और विकास” पर अपनी बात के साथ सत्र की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि यह तकनीक नई दवाओं के डिजाइन और विकास के लिए बहुत उपयोगी है। वनस्पति विज्ञान विभाग,लखनऊ विश्वविद्यालय से प्रो अमृतेश चंद्र शुक्ला और जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी से प्रो पापिया चौधरी ने संगोष्ठी में अपने विचार साझा किए। विभिन्न प्रतिभागियों के शोध कार्य को प्रेरित करने के लिए ई-संगोष्ठी के दौरान कई मौखिक और पोस्टर प्रस्तुतियों का स्वागत किया गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 20 से अधिक पोस्टर आमंत्रित किए गए और उन्हें प्रदर्शित भी किया गया।