• शास्त्रों व पुराणों में यज्ञ है मानव जीवन का रक्षक
  • धर्म व विज्ञान में हवन वातावरण शुद्ध करने का माध्यम 
  • जैविक विषाणु को नष्ट करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका

24 April 2020, Friday

RAJAT SAXENA/ ARCHANA SHARMA

अब यज्ञ ही वह तरीका बचा है जिससे वातावरण को शुद्ध किया जा सकता है। न केवल हिन्दू पुराणों व शास्त्रों में इसकी खूबियों का उल्लेख है बल्कि विज्ञान और धर्म दोनों ही मान चुके हैं कि हवन में जो सामग्री इस्तेमाल की जाती है उसके जलने से न केवल वातावरण शुद्ध होता है बल्कि ऑक्सीजन में वृद्धि होती है और जो भी जैविक विषाणु वातावरण में व्याप्त होते हैं उनका खात्मा भी हो जाता है।

इस सम्बन्ध में न केवल आचार्यों बल्कि अपने अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भी विचार रखे और लोगों को सलाह दी कि हवन को केवल तीज त्योहारों में ही न करके प्रत्येक महीने में कम से कम दो बार ज़रूर करें ताकि आपके घर के आस पास का पूरा वातावरण शुद्ध रहे और आप किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचे रहें। 

गायत्री परिवार के प्रतिनिधि मनोज सेंगर बताते हैं कि शांतिकुंज हरिद्वार में यज्ञोपैथी की एक यज्ञ शाला है, जहां यज्ञोपैथी पर प्रयोग हो रहे हैं। तमाम शोध में सामने आया है कि हवन के माध्यम से औषधियों को सूक्ष्म करके वायु मंडल में बिखेर दिया जाता है। हवन में अग्नि को डालकर उसकी शक्ति को दोगुना कर दिया जाता है। मगर हवन स्नान करके ही किया जाना चाहिए। अगर महीने में दो बार सुबह अथवा शाम को यज्ञ किया जाये तो वातावरण को शुद्ध करने के साथ ही जैविक विषाणु भी नष्ट हो जाते हैं। हवन, मंत्र के साथ ही अगर शंख ध्वनि भी कर दी जाये तो इसका प्रभाव दोगुना बढ़ जाता है क्योंकि शंख की ध्वनि जहां-जहां भी होती है उससे 10 मीटर की दूरी तक किसी भी तरह के संक्रमण का प्रभाव न के बराबर होता है। हमारे ऋषि मुनियों ने तमाम शोध के बाद भारतीय संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठानों का निर्माण किया था। 

आचार्य ओम हरी शर्मा बताते हैं कि श्रीमद भागवतगीता में यज्ञ का विस्तार से वर्णन किया गया है।  वह कहते हैं कि गीता के अध्याय तीन के 10  श्लोक में कहा गया है, 

‘सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा 

पुरोवाच प्रजापति:।

अनेन प्रसविष्यध्व-

मेष वोस्त्विष्टकामधुक्। ‘ अर्थात 

प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि यानि सृष्टि के आरम्भ में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम (मानव) लोग इस यज्ञ के द्वारा वृद्धि (कामनाओं की पूर्ति) को प्राप्त हो और यह यज्ञ आप लोगों को इच्छित (जीवन को मंगलमय बनाने वाला ) फल प्रदान करने वाला हो। इसी तरह इसी अध्याय का 14 वां श्लोक कहता है 

‘अन्नाद्भवन्ति भूतानि 

पर्जन्यादन्नसंभवः।

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो

यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।’ अर्थात 

सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति बरसात से होती है और बरसात यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्म समूह को वेद से उत्पन्न जाने और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जाने ।

इससे यह सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदैव यज्ञ में प्रतिष्ठित है। इसी सन्दर्भ में शुक्ल यजुर्वेद के 18 वें अध्याय में 29 मंत्रों में मिट्टी से लेकर सुवर्ण तक की कामना यज्ञ के द्वारा की गई है। 

आचार्य डॉ विनोद मिश्र कहते हैं कि हवन से न केवल बाहरी बल्कि ज़ब हम सांस लेते हैं तो हमारी आंतरिक समस्या भी ठीक होती है। अगर हवन व शंख ध्वनि को दिनचर्या में शामिल कर लिया जाये तो न जाने कितने ही विषाणु स्वतः ही नष्ट हो जायेंगे। 

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एसके ओझा बताते हैं कि भारतीय संस्कृति सबसे उत्तम रही है लेकिन अब पाश्चात्य सभ्यता और दिखावे ने मानव जीवन को तमाम मुसीबत में डाल दिया है। हवन सामग्री जैसे चन्दन पावडर, अगर तगर आदि सुगन्धित लकड़ियां जलाने से बैक्टीरिया मर जाते हैं। पूरा वातावरण शुद्ध होता है और हमें भरपूर ऑक्सीजन मिलती है लेकिन अब लोगों केवल इसकी भी रस्म अदाएगी भर कर लेते हैं। 

सुरस एवं सुगंध विकास केंद्र सहायक निदेशक भक्ति विजय शुक्ला बताते हैं कि हवन पर कई रिसर्च हुई हैं जिसमें ये सिद्ध हुआ है कि हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है और वायुमंडल में व्याप्त जीवाणु व विषाणु नष्ट हो जाते हैं। 

आर्य आयुर्वेदिक फार्मेसी के संस्थापक विष्णु मित्र ने जानकारी देते हुए बताया कि यज्ञ करना ही पर्याप्त नहीं है इसके लिए आवश्यक है कि  अच्छी जड़ी बूटियों से युक्त सामग्री हो, आम के पेड़ की समिधा हों और मंत्र का सही उच्चारण किया जाए तो यज्ञ का पूरा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सामग्री के यज्ञ में प्रज्वलित होने से जहां  वातावरण शुद्ध होगा वहीं मंत्रों के सही उच्चारण से शरीर के विभिन्न  तंत्रों पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

 

उन्होंने बताया कि हवन सामग्री में प्रमुख रूप से  गूगल, चन्दन बुरादा, सुगंध कोकिला, सुगंध मंत्री, अगर तगर, बावची, सुगंधबाला, हाऊबेर, तेज़पत्ता, तुलसीपत्र, देवदारु, कश, छड़ीला फूल, धाता फूल, कपूर कचरी, नगर मोथा, बेल, घुड़ बच, दारुहल्दी, केसर, जावित्री, दालचीनी, गाय का देशी घी, कमलगट्टा, लौंग, इलायची, जटामासी, तिल, जौ और आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।   

हवन करने का सही तरीका… 

हवन सुबह अथवा शाम को करना चाहिये। महीने में दो बार हवन ज़रूर करें। एक व्यक्ति को कम से कम 24 आहुतियां डालनी चाहिये। अर्थात एक व्यक्ति को कम से कम 250 ग्राम हवन सामग्री का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिये। इसके साथ ही हवन में किसी भी एक मिष्ठान की आहुति देना चाहिए।