परशुराम जयंती पर विशेष

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म वैशाख कृष्णपक्ष तृतीया को भृगुवंशीय ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था। इसी दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार 26 अप्रैल को भगवान परशुराम की जयंती है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार के रूप में अवतरित इनका प्रारम्भिक नाम राम रखा गया लेकिन अपने गुरू भगवान शिव से प्राप्त अमोघ दिव्य शस्त्र परशु (फरसा) को धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए। आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि जन्म समय में छह ग्रह उच्च के होने से वह तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी महापुरुष बने। प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य था। न्याय के पक्षधर भगवान परशुराम जी दीन दुखियों, शोषितों और पीड़ितों की निरंतर सहायता और रक्षा करते थे।

परशुराम भगवान के जीवन से जुड़ी जानकारी…

उनकी सहृदयी और दानशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया और पूरी दुनिया को जीत लिया। उसके बाद संपूर्ण धरा का दान कश्यप ऋषि को कर स्वयं महेन्द्र पर्वत पर निवास करने चले गए। शास्त्रों के अनुसार परशुराम जी चिरंजीवी हैं व आज भी जीवित व तपस्या में लीन हैं। परशुराम का सप्त चिरंजीवियों में स्थान है।
अश्वत्थामा वलिर्व्यासो हनुमांशच विभीषण:। कृपछ परशुरामश्च सप्तैते चिरजीवन:।।
शिव धनुष भंग प्रकरण में लक्ष्मण द्वारा असीमित तर्क के बाद भाई श्रीराम के अनुरोध पर परशुराम ने उन्हें क्षमा दान दिया। यही नहीं कर्ण का सत्य उजागर होने के बाद भी उन्होंने समसेत विद्या भूलने के बजाए सिर्फ इतना ही श्राप दिया कि दिव्यास्त्र चलाना उस समय भूल जाओगे, जब इसकी सर्वाधिक आवश्यकता होगी। भगवान गणेश ने जब शिवजी से मिलने के लिए उन्हें जबरन रोका तो उनसे युद्ध न करके उनका एक दांत ही भंग कर उन्हें दंड दिया। इस तरह गणेश जी एकदन्त कहलाये।ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान परशुराम अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे तभी द्रोणाचार्य उनके पास पहुंचे। तब तक वह सब कुछ दान कर चुके थे परशुराम ने दयाभाव से कोई अस्त्र-शस्त्र चुनने के लिए कहा। तब चतुर द्रोणाचार्य ने उनके सभी अस्त्र-शस्त्र उनसे मंत्र सहित मांग लिए और परशुराम जी ने ‘एवमस्तु!’ अर्थात् ऐसा ही हो कह कर अपने अस्त्र शस्त्र दान कर दिए।
भगवान परशुराम ने अराजकता समाप्त करने के लिए पहले सहस्त्रार्जुन और बाद में उसके वंश का समूल नाश किया। वे स्वयं इससे प्रसन्न नहीं थे लेकिन न्याय के खातिर उन्होंने यह किया। महाभारत काल में अंबिका से विवाह के लिए मना करने पर उन्होंने भीष्म पितामह से भी युद्ध किया और उनकी प्रतिज्ञा की रक्षा करने के लिए पितरों के आदेश के उपरांत उन्होंने युद्ध समाप्त कर दिया। भगवान परशुराम माता-पिता को ईश्वर तुल्य मानते थे। उनका आदेश उनके लिए सब कुछ था। एक बार पिता के आदेश पर आंखे मूंद सिर धड़ से अलग कर दिया। पिता उनकी पितृ भक्ति से प्रसन्न हुए और वरदान दिया। वरदान में उन्होंने मां का जीवन वापस मांगकर मां के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाई।