RAJAT SAXENA / ARCHANA S SHUKLA

सुन मगरूर, जाहिल, जालिम तू क्या मेरा ‘नूर’ मिटाएगा। मैं बेटी हूं, सबला  हूं, पिता की मैं अभिमान हूं स्वाभिमान हूं। तनिक सी बिखरी थी, ठहरी थी अब संभली हूं, अब दौडूंगी, जो न सोची थी मंजिल उसको पार कर  दिखाऊंगी। तूने जो दिए थे मुझे दाग वही आज मेरी खूबसूरती को बयां कर रहे हैं।  

“छई छप्पा छई छपाक छई” से “छपाक” तक पहुंचना बहुत ही हृदय विदारक और जिंदगी को झकझोर देने वाली हकीकत है। यह एक ऐसी हकीकत है जिसे एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल ने अपने आत्मविश्वास से उन लोगों के मुंह पर तमाचा मारा है जो खूबसूरती को ही सफलता का आईना मानते हैं। उनके आत्मविश्वास ने ही अन्य एसिड अटैक पीड़ितों को समाज में सशक्त बन अपना मुकाम हासिल करने का हौसला दिया है। समाज में एसिड अटैक पीड़ितों के प्रति लोगों की सोच बदलने का माध्यम भी बनी है।

  आज भी समाज में इनके प्रति जो लोग अपना अलग नजरिया रखते हैं वह समाज में अकेले पड़ते दिखाई देने लगे हैं। लक्ष्मी अग्रवाल ने यह दस्तक दी है कि जब नजारे बदलते हैं तो लोगों के नजरिऐ भी बदल जाते हैं।  समाज का प्रबुद्ध वर्ग चाहता है कि इन बेटियों को मुख्यधारा से जोड़ा जाए। इनको सबल बनाया जाए, आत्मनिर्भर बनाया जाए जिससे यह आम जनमानस के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें और उस मुकाम को हासिल कर सकें जिसकी इनको हमेशा से ख्वाहिश रही है।

फ़िल्म “छपाक” आज रिलीज़ हो रही है इस मूवी ने जहाँ एसिड अटैक सर्वाइवर के घाव को ताजा कर दिया है तो वही आम जनमानस में भी इस मुद्दे को गरम कर दिया है। हालांकि सख्ती के बाद तेज़ाब का बिकना कम हुआ है लेकिन अभी भी गांव देहात के तमाम हिस्से हैं जहाँ इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है वहाँ तेज़ाब खुले आम बिक रहा है। ऐसे में आम जनमानस की चिंता जस की तस बनी हुई है। जहाँ एक ओर इस फ़िल्म ने लोगों की संवेदना को बढ़ा दिया है वही कानून और सरकार को भी चेताया है कि बेटियों की रक्षा के लिये ठोस कदम उठाये जाएं…….,,,,इस गंभीर मुद्दे पर एक रिपोर्ट

    

समाज का रुख इनको करता है परेशान

अपराधियों को तो दंड देर सवेर मिल ही जाता है लेकिन हमारा समाज तेजाब पीड़ितों के प्रति जो रुख रखता है वह सबसे ज्यादा और असंवेदनशील है। ऐसे में कई बार पीड़ित मानसिक रूप से इतने दबाव में आ जाता है कि  आत्महत्या कर लेता है इसलिए इनकी भावनाओं की कद्र करते हुए हम सबको इनका साथ निभाना चाहिए न कि किसी भी तरीके से हवेलना। मैं अपराधियों को बीच सड़क पर ऐसे कठोर दंड देने का कानून बनाने की मांग करती हूं जिससे समाज में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार का अपराध करने की कोशिश न करे। मैंने एसिड पीड़ितों के ऊपर एक एल्बम ‘नूर’ भी बनाया है।(अद्वितिया वर्मा, मॉडल एवं कलाकार, कानपुर नगर) 

अपराधियों  को न मिले जमानत

अपराधियों को  जमानत नहीं मिलनी चाहित, वकील व पुलिस को भी संवेदनशील होना होगा। जहां वकीलों को इन अपराधियों के किस नहीं लड़ने चाहिए वही पुलिस को भी इनके प्रति कठोर से कठोर रुख अख्तियार करना चाहिए जिससे ऐसे अपराधियों में अपराध करने से पहले उनकी रूह कांप उठे। ऐसे तमाम केस सेंटर पर आते रहते हैं जिनके साथ  समझ को खड़ा होना चाहिए जिससे इन पीड़ितों का आत्मबल मजबूत हो और यह समाज में मुख्यधारा से जुड़ सकें। (अर्चना सिंह, प्रशासिका, वन स्टॉप सेंटर, लखनऊ)  

 

मुख्यधारा से जोड़ने के लिए देना चाहिए सहयोग

तेजाब से किसी की जिंदगी बदलने वाले ऐसे अपराधियों को सबसे पहले जेल के अंदर हमेशा के लिए डाल देने का कानून बनना चाहिए। मैं तो यही कहना चाहूंगी कि समाज की परवाह किए बगैर इन पीड़ितों को अपने मुकाम की ओर बढ़ते रहना चाहिए। समाज हमेशा सफलता के सामने नतमस्तक हुआ है। जो लोग समाज में इन पीड़ितों से किसी भी प्रकार का गुरेज करते हैं वह भी दोषी हैं क्योंकि यह रोज-रोज, पल-पल उस लम्हे को याद दिलाते हैं जो किसी ने दर्दनाक बनाए थे। इनके प्रति ऐसा रुख रखें जिससे यह समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके और समाज का  प्रमुख अंग बन सकें।  (अंकिता श्रीवास्तव, फाउंडर,  S2 फिटनेस क्लब, पुणे)

 

माता पिता ही स्वीकार नहीं करते

सबसे बड़ा दर्द तो इन बेटियों के साथ यह है कि इनको इनके माता पिता ही स्वीकार नहीं करते जबकि इनका कोई दोष भी नहीं होता। इन बेटियों के न केवल शरीर बल्कि मन पर भी घाव किया जाता है। वह बहादुर बेटियाँ है जो इन घटनाओं के बाद भी खुद को समाज में खड़ा कर रही हैं। हम सबको इनके साथ खड़ा होना चाहिए। अपराधियों को फांसी से कम तो कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिये। सरकार को चाहिये कि इन पीड़िताओं के लिए प्लास्टिक सर्जरी के लिये बजट बनाये और इनका सहयोग करे।(रीता सिंह, अध्यक्ष, यूपी चैप्टर, नेशनल काउंसिल ऑफ वूमेन इन इंडिया, लखनऊ)

 

स्कूलों में मोरल एजुकेशन और वैल्यूज पर विशेष ध्यान दिया जाए

समाज का नैतिक दायित्व बनता है कि वह बेटियों के बिखरते सपनों को सजोने का काम करे। स्कूलों में मोरल एजुकेशन और वैल्यूज पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि लोग बेटियों के प्रति इस प्रकार के अपराध न करें। मानसिक रूप से विकृत लोग इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते हैं। इन लोगों का स्वस्थ समाज में खुलेआम घूमना समाज के हित में नहीं है। बेटियां बहुत ही कोमल स्वभाव की होती हैं  उन पर तेजाब का हमला उनके स्वरूप को ही विकृत नहीं करता बल्कि उनकी मानसिक मनोदशा को काफी हद तक प्रभावित करता है।( नीना वर्मा, सेवानिवृत्त अध्यापिका, कानपुर नगर)

 

पुख्ता सबूत हो तो इनका बचना नामुमकिन

जहां तक कानून की बात की जाए हर अपराध के लिए कठोर से कठोर दंड का प्रावधान है। जरूरत इस बात की है कि पुलिस वारदात के समय मौजूद पुख्ता सबूतों, बयानों आदि पर गंभीरता से काम करे जोकि नहीं करती है। अगर अपराधियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हो तो इनका बचना नामुमकिन है। ( राजवीर सिंह,अधिवक्ता, आगरा)

 

न बिके खुलेआम तेजाब   

तेज़ाब खुलेआम नहीं बिकना चाहिये। ग्रामीण क्षेत्रों में यह खुलेआम बिकता देखा जा सकता है। जो अपराधी हो उसको फांसी हो। कोर्ट में केस पेंडिंग रहते तो कुछ लड़ते लड़ते हार जाते हैं इसलिये अपराधी बच जाते हैं।

(सुरुचि बाजपई, एलएलबी छात्रा,लखनऊ )