मंत्र पहुंचा देंगे शक्ति पीठ
नवरात्र में माँ दुर्गा के शक्तिपीठ जाने की रही है भक्तों में परम्परा
लेकिन कोरोना वायरस के कारण भक्त घरों में हो गए हैं कैद
घर बैठे ही 52 शक्तिपीठों की कृपा प्राप्त करने का उपाय
इस बार कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में जहाँ आपातकालीन स्थिति बनी हुईं है और सुरक्षा की नज़र से लोग घरों में दुबक गए हैं तो इसी बीच शुरु हुए नौ दिन के महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व नवरात्र भी कहीं न कहीं प्रभावित हुआ है। ऐसे में माता के भक्तों को वृंदावन के आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री घर पर ही रहकर माँ की पूजा अर्चना करने की सलाह दें रहे हैं। इस विषम परिस्थिति में ज़ब लोग माँ के शक्ति पीठ पहुँच पाने में असमर्थ हैं तो आचार्य व ज्योतिष भक्तों को घर पर ही रहकर सिर्फ मंत्रों का उच्चारण कर ही सभी पीठों के दर्शन कर लेने की महत्वपूर्ण जानकारी दें रहे हैं और बता रहे हैं कि वह कौन कौन से मंत्र हैं जिससे माता के सभी रूपों की कृपा प्राप्त हो सकती है। आचार्य सुशील कहते हैं कि मात्र मंत्र ही है जिससे माँ दुर्गा को प्रसन्न किया जा सकता है और यह घर पर भी रहकर किया जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी नहीं कि मंदिर या शक्तिपीठ ही जाया जाये। इन मंत्रों को 108 माला या उससे ज्यादा बार भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समय और परिस्थिति को देखते हुए ही निर्णय लेना चाहिये, यह हमारे धर्म शास्त्र भी कहते है।
माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’
का जाप अधिक से अधिक अवश्य करें।।
भारत के 52 शक्तिपीठ
- किरीट- विमला माता
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। मुर्शिदाबाद कोलकाता से 239 किलोमीटर की दूरी पर है।
- वृंदावन- उमा माता
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील में माता के बाल के गुच्छे गिरे थे। वृंदावन आगरा से 50 किलोमीटर और दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर है।
- करवीरपुर या शिवहरकर
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह शक्तिपीठ है, जहां माता की आंखें गिरी थी। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है।
- श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी माता
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। इसीलिए यह शक्तिपीठ कहलाया.
- वाराणसी- विशालाक्षी
उत्तर प्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान की बाली गिरी थी। इसीलिए इसे शक्तिपीठ कहा गया।
- सर्वेशेल या गोदावरीतीर
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे।
- विरजा- विरजाक्षेत्र
यह शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओडिशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं।
- मानसा-दाक्षायणी
तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता सती का दायाँ हाथ गिरा था। भारतीय श्रद्धालुओं की एक सीमित संख्या को कैलाश मानसरोवर हर साल यात्रा करने की अनुमति है।
- नेपाल-महामाया
नेपाल के पशुपतिनाथ नाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में माता सती के दोनों घुटने गिरे थे।
- हिंगलाज
पाकिस्तान, कराची से १२५ किमी उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता सती का सर गिरा था। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहां वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।
- सुगंधा- सुनंदा
बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध का शक्तिपीठ है जहाँ माता सती की नासिका गिरी थी।
- कश्मीर- महामाया
कश्मीर के पहलगाव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस सशक्तिपीठ को महामाया के नाम से जाना जाता है। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से जुड़े हुए हैं। यात्रा के इस भाग के लिए बसें उपलब्ध की जा सकती हैं।
- ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में माता सती की जीभ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी दक्षिण की और में स्थित है, धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है।
- जालंधर- त्रिपुरमालिनी
पंजाब के जालंधर छावनी के पास देवी तलाब है जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था।
- वैद्यनाथ- जयदुर्गा
झारखंड में स्थित वैद्यनाथधाम पर माता का हृदय गिरा था। यहाँ माता के रूप को जयमाता और भैरव को वैद्यनाथ के रूप से जाना जाता है।
- गंडकी- गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ स्थित है जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था।
- बहुला- बहुला (चंडिका)
बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है जहाँ माता सती का बायां हाथ गिरा था।
- उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका
बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी।
- त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी
त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव पर माता का दायाँ पैर गिरा था।
- चट्टल – भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी।
- त्रिस्रोता- भ्रामरी
बंगाल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था।
- प्रयाग- ललिता
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता है।
- जयंती- जयंती
यह शक्तिपीठ आसाम के जयंतिया पहाड़ी पर स्थित है जहां देवी माता सती की बाईं जंघा गिरी थी। यहां देवी माता सती को जयंती और भगवान शिव को कृमाशिश्वर के रूप में पूजा की जाती है।
- युगाद्या- भूतधात्री
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है।
- कन्याश्रम- सर्वाणी
कन्याश्रम में माता का पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम से जाना जाता है। कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है।
- कुरुक्षेत्र- सावित्री
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में माता के टखने गिरे थे। इस शक्तिपीठ को सावित्री के नाम से जाना जाता है।
- मणिदेविक- गायत्री
मनीबंध, अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री पहाड़ के पास स्थित है जहां माता की कलाई गिरी थी।
- श्रीशैल- महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था।
- कांची- देवगर्भा
कंकाललाला, बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर, देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती है, जहां माता का श्रोणि गिरा था।
- पंचसागर- वाराही
पंचासागर शक्ति पीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित जहां मां माता सती के निचले दंत गिरे थे।
- करतोयातट- अपर्णा
अपर्णा शक्ति पीठ एक ऐसी जगह है जहां देवी माता सती के बाईं पायल गिरी थी। यहां देवी को अपर्णा या अर्पान के रूप में पूजा की जाती है जो कि कुछ भी नहीं खाती और भगवान शिव को बैराभा का रूप मिला।
- विभाष- कपालिनी
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर स्थान पर माता की बाएं टखने गिरे थे।
- कालमाधव -देवी काली
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था।
- शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)
मध्यप्रदेश के अमरकंटक जिले में स्थित नर्मदा के उद्गम पर माता का दायाँ नितम्ब गिरा था.
- रामगिरि- शिवानी
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ स्तन गिरा था।
- शुचि- नारायणी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे।
- प्रभास- चंद्रभागा
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था।
- भैरवपर्वत- अवंती
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरीओष्ठ गिरे थे। उज्जैन भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और लोग यहां आने के लिए परिवहन के सभी साधनों का उपयोग कर सकते हैं।
- जनस्थान- भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर पर माता की ठोड़ी गिरी थी। निकटतम रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा नासिक स्थित है।
- रत्नावली- कुमारी
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां कंधा गिरा था।
- मिथिला- उमा (महादेवी)
भारत-नेपाल की सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायाँ कंधा गिरा था।
- नलहाटी- कालिका
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता के स्वर रज्जु गिरी थी।
- देवघर- बैद्यनाथ
झारखंड के बैद्यनाथ में जयदुर्गा मंदिर एक ऐसी जगह है जहां माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर को स्थानीय रूप से बाबा मंदिर / बाबा धाम कहा जाता है। परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ वैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने मौजूद हैं।
- कर्णाट जयादुर्गा
कर्णाट शक्ति पीठ कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है, माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहां देवी को जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव की अबिरू के रूप में पूजा की जाती.
- यशोर- यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ की हथेली गिरी थी। यह ईश्वरपुर, श्यामनगर उपनगर, सातखिरा जिला, बांग्लादेश में स्थित है।
- अट्टाहास- फुल्लरा
पश्चिम बंगला के अट्टाहास स्थान पर माता के निचला ओष्ठ गिरा था। यह कोलकाता से 115 किमी दूर है।
- नंदीपूर- नंदिनी
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में माता का गले का हार गिरा था। बीरभूमि में विभिन्न स्थानों से शुरू होने वाली कई सीधी बसें हैं। यह शक्ति पीठ स्थानीय रेलवे स्टेशन स केवल10 मिनट की दूरी पर है।
- लंका- इंद्राक्षी
श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। यह पीठ, नैनातिवि (मणिप्लालम) में है. श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर, नल्लूर में है। रावण (श्रीलंका के राजा) और भगवान राम ने भी यहां पूजा की थी।
- विराट- अंबिका
यह शक्ति पीठ राजस्थान मैं भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहां माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थी।
- सर्वानन्दकारी
बिहार के पटना में माता माता सती कि यहां दाई जांघ गिरी थी। इस शक्तीपीठ को सर्वानंदकारी के नाम से जाना जाता है।
- चट्टल
यह मंदिर माता सती के 52 शक्ति पिठों में सूचीबद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि, माँ माता सती का दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। चट्टल शक्ति पीठ, चटगांव जिला, बांग्लादेश के सताकुंडा स्टेशन में स्थित है।
- सुगंध-देवी सुनंदा
सुगंध शक्तिपीठ देवी सुनंदा को समर्पित एक मंदिर है। यह बांग्लादेश से, 10 किलोमीटर उत्तर बुलिसल के शिखरपुर गांव में स्थित है। यह कहा जाता है कि माँ माता सती की नाक यहाँ गिरी थी।