रोगों को नष्ट करती है चतुर्थ माँ कुष्मांडा
ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली माँ कुष्मांडा का निवास है सूर्यलोक में
माता शक्ति का चौथा रूप स्वरूप कूष्मांडा है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ के इसी रूप की पूजा कि जाती है। आचार्य सुशील शास्त्री कहते हैं कि ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारो ओर अंधकार था। तब माँ ने महा शून्य में अपने मंद हास से उजाला करते हुए अंड की उत्पत्ति की, जोकि बीज रूप में ब्रह्म तत्व के मिलने से ब्रह्मांड बना। यही माँ का अजन्मा और आदि शक्ति का रूप है। जीवों में माँ का स्थान अनाहत चक्र में माना गया है। नवरात्रि के चौथे दिन योगीजन इसी चक्र में अपना ध्यान लगाते हैं। माँ का निवास स्थान सूर्य लोक में माना गया है। उस लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल माँ कुष्मांडा में है। माँ के स्वरूप की कांति और तेज मंडल भी सूर्य के समान ही अतुलनीय है। माँ का तेज़ व प्रकाश दसों दिशाओं के साथ ही ब्रह्मांड के चराचर में व्याप्त है। माँ अष्टभुजा है। उनके हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है। जबकि आठवें हाथ में सर्व सिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जपमाला है। मेरा वाहन बाघ है। मेरु उपासना से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है। सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भक्तों के सभी रोग शोक नष्ट हो जाते हैं।
ऐसे प्रसन्न होती है माँ…
नवरात्र के चौथे दिन अत्यंत पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना पूरी विधि-विधान से करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मां कुष्मांडा को लाल गुलाब अति प्रिय है। यह फूल चढ़ाने से माँ रोगों से निजात दिलाती है और जीवन को दीर्घ बनाती है। प्रसिद्धि व शोहरत पाने के लिए माता को मालपुए का भोग लगाएं। इस उपाय से बुद्धि भी कुशाग्र होती है। इस प्रसाद को दान करें तथा स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन कन्याओं को मिठाई, कोल्ड क्रीम आदि भेंट करें देवी कुष्मांडा की पूजा करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का जाप करें।